सीएम धामी ने 16वें वित्त आयोग के समक्ष उत्तराखंड की भौगोलिक चुनौतियों और राजस्व क्षति की भरपाई को लेकर गंभीर मांगें रखीं।
CM Dhami Highlights Uttarakhand’s Needs in Finance Meet
परिचय: क्यों जरूरी है पहाड़ी राज्यों की विशेष आर्थिक मदद?
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में हर राज्य की भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक संरचना अलग है। खासकर उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य, जहां विकास कार्यों की लागत अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक होती है। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार समय-समय पर राज्यों के वित्तीय संतुलन के लिए वित्त आयोग (Finance Commission) का गठन करती है।
हाल ही में, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 16वें वित्त आयोग की बैठक में राज्य की विशेष आवश्यकताओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। इस लेख में हम समझेंगे कि उत्तराखंड ने आयोग से क्या मांगें कीं, राज्य को किन आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और आगे की संभावनाएं क्या हैं।
16वां वित्त आयोग क्या है और इसका उद्देश्य क्या होता है?
संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित एक महत्वपूर्ण संस्था
वित्त आयोग का गठन प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार भारत सरकार द्वारा किया जाता है। इसका मुख्य कार्य:
- केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व वितरण का निर्धारण
- राज्यों की वित्तीय जरूरतों का मूल्यांकन
- अनुदान और सहायता राशि की सिफारिश करना होता है।
16वां वित्त आयोग वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कर रहा है, ताकि आने वाले वर्षों के लिए केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों को संतुलित रूप दिया जा सके।
सीएम धामी की मांगें: उत्तराखंड को चाहिए विशेष मुआवजा और सहायता
प्राकृतिक आपदाओं और सीमावर्ती क्षेत्र की चुनौतियों का हवाला
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 16वें वित्त आयोग के समक्ष राज्य की विशेष भौगोलिक परिस्थितियों, प्राकृतिक आपदाओं की अधिकता, और सीमावर्ती सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का हवाला देते हुए निम्नलिखित अहम मांगें रखीं:
- राजस्व घाटे की भरपाई के लिए विशेष सहायता पैकेज
- इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए पूंजीगत अनुदान
- पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अलग से फंडिंग मॉडल
- स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क निर्माण में सहायता
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में परियोजनाओं की लागत मैदानी क्षेत्रों की तुलना में दुगनी से तिगुनी होती है, इसलिए “एक आकार सभी के लिए उपयुक्त” नीति उत्तराखंड के लिए व्यावहारिक नहीं है।
उत्तराखंड की वित्तीय स्थिति: राजस्व और व्यय में असंतुलन
आय सीमित, व्यय अधिक
उत्तराखंड एक छोटा राज्य है, जिसकी राजस्व आय सीमित है, जबकि खर्चों में भारी वृद्धि होती जा रही है। राज्य की आय के प्रमुख स्रोत हैं:
- GST और अन्य कर
- केंद्र से प्राप्त अनुदान और सहायता
- पर्यटन और तीर्थाटन से होने वाली आय
लेकिन इसके सामने भारी चुनौतियां हैं:
- भूस्खलन, बाढ़ और हिमपात जैसी आपदाओं पर भारी खर्च
- सीमा सुरक्षा में सहायता देने के कारण विशेष संसाधन खर्च
- स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्रों में भारी निवेश की आवश्यकता
इस परिस्थिति में, वित्त आयोग की सहायता अत्यंत आवश्यक हो जाती है।
पहाड़ी राज्य की चुनौतियां और विशेषताएं
विकास कार्यों में लागत और समय दोनों अधिक
उत्तराखंड की 70 प्रतिशत से अधिक भूमि पहाड़ी है, जिससे:
- सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाने में अधिक लागत आती है
- निर्माण कार्यों में देरी और कठिनाई होती है
- जनसंख्या का फैलाव विकास कार्यों के लिए बाधा बनता है
- प्राकृतिक आपदाओं से विकास कार्यों को बार-बार नुकसान होता है
इन कारणों से सीएम धामी ने विशेष नीति और योजना की मांग की है।
सीएम धामी का दृष्टिकोण: समावेशी और स्थायी विकास की ओर
राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की योजना
सीएम धामी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार विकास कार्यों में पारदर्शिता, गति और जवाबदेही को प्राथमिकता दे रही है। उन्होंने आयोग को अवगत कराया कि:
- राज्य ने कई ई-गवर्नेंस योजनाएं शुरू की हैं
- पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास हो रहे हैं
- स्वच्छ ऊर्जा और जल संरक्षण पर फोकस किया गया है
- युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट और स्टार्टअप को प्रोत्साहन दिया जा रहा है
लेकिन इन योजनाओं को सफल बनाने के लिए वित्तीय सहायता जरूरी है।
अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड की मांगें क्यों खास हैं?
सीमा पर स्थित राज्य और पर्यावरणीय संवेदनशीलता
उत्तराखंड की स्थिति कुछ मामलों में अन्य राज्यों से बिल्कुल अलग है:
- यह राज्य चीन और नेपाल सीमा पर स्थित है, जिससे सुरक्षा लागत अधिक होती है
- यहां स्थित हैं चारधाम जैसे धार्मिक स्थल, जिनसे लाखों श्रद्धालु हर साल आते हैं
- लेकिन इस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष व्यवस्था की जरूरत होती है
- पर्यावरणीय दृष्टि से यह एक संवेदनशील राज्य है, जहां संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है
इसलिए उत्तराखंड की मांगें केवल एक राज्य की आर्थिक जरूरत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय रणनीतिक और पर्यावरणीय संतुलन से जुड़ी हैं।
वित्त आयोग की प्रतिक्रिया और भविष्य की उम्मीदें
सकारात्मक संकेत लेकिन अंतिम निर्णय प्रतीक्षित
सीएम धामी की प्रस्तुति के बाद, वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों ने उत्तराखंड की जरूरतों को समझा और आश्वस्त किया कि वे इन बिंदुओं को गंभीरता से विचार में लेंगे।
अब सबकी निगाहें आयोग की अंतिम रिपोर्ट और सिफारिशों पर टिकी हैं, जो आने वाले महीनों में सामने आएगी। यदि उत्तराखंड को अपेक्षित सहायता मिलती है, तो राज्य को आने वाले वर्षों में विकास के नए रास्ते मिल सकते हैं।
निष्कर्ष: उत्तराखंड की आवाज़ को मिल रहा है राष्ट्रीय मंच
16वें वित्त आयोग के समक्ष मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा प्रस्तुत की गई मांगें, राज्य की जमीनी जरूरतों और भविष्य की योजनाओं का सार हैं। यह न केवल उत्तराखंड की आर्थिक मजबूती का सवाल है, बल्कि भारत की समग्र विकास नीति में संतुलन और समावेशिता लाने की दिशा में एक आवश्यक पहल है।
यदि आयोग उत्तराखंड की बातों पर गंभीरता से विचार करता है, तो यह राज्य ‘डबल इंजन’ की सरकार की परिकल्पना को जमीन पर साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
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