केदारनाथ यात्रा में 14 घोड़े-खच्चरों की अचानक मौत से मचा हड़कंप, एक्वाइन इन्फ्लूएंजा वायरस की आशंका, जांच के लिए दिल्ली से पहुंची टीम।
Mysterious Deaths of 14 Horses and Mules in Kedarnath Spark Concern, Central Team Investigates
केदारनाथ यात्रा में घोड़े-खच्चरों की रहस्यमयी मौत
तीर्थयात्रियों की सुविधा के प्रमुख साधन बने जानवरों पर संकट
चारधाम यात्रा भारत के सबसे पवित्र धार्मिक अभियानों में गिनी जाती है, और केदारनाथ धाम इसका एक प्रमुख केंद्र है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस तीर्थ के दर्शन के लिए आते हैं। हालांकि केदारनाथ तक का रास्ता कठिन है और अधिकांश लोग 16 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई घोड़े-खच्चरों के सहारे पूरी करते हैं। लेकिन इस वर्ष की यात्रा में एक बड़ी चिंता सामने आई है – मात्र दो दिनों में 14 घोड़े-खच्चरों की अचानक मौत हो गई है।
यह स्थिति न केवल जानवरों के स्वास्थ्य की चिंता को उजागर करती है, बल्कि तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और यात्रा की व्यवस्थाओं पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
अचानक मौत की वजह क्या है?
एक्वाइन इन्फ्लूएंजा वायरस पर शक
उत्तराखंड सरकार के पशुपालन विभाग के अनुसार, इन मौतों के पीछे एक्वाइन इन्फ्लूएंजा वायरस (Equine Influenza) को संभावित कारण माना जा रहा है। पशुपालन सचिव डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने जानकारी दी कि रविवार को 8 और सोमवार को 6 घोड़े-खच्चरों की मौत हुई। इसके तुरंत बाद प्रशासन ने घोड़े-खच्चरों के संचालन पर 24 घंटे की रोक लगा दी ताकि कारणों की गहराई से जांच हो सके।
उन्होंने बताया कि अप्रैल महीने में ही इस वायरस के लक्षण कुछ जानवरों में देखे गए थे, जिसके बाद 16 हजार घोड़े-खच्चरों की स्क्रीनिंग की गई।
केंद्र सरकार की टीम ने संभाली कमान
मौत की असली वजह तलाशने पहुंची विशेषज्ञों की टीम
मंगलवार को दिल्ली से एक विशेषज्ञ टीम केदारनाथ पहुंची है, जो इन मौतों की विस्तृत जांच कर रही है। प्रारंभिक आरटीपीसीआर टेस्ट के मुताबिक जो नमूने लिए गए थे, वे बाद में निगेटिव पाए गए, जिससे एक्वाइन इन्फ्लूएंजा के अलावा अन्य वायरस या कारणों की भी आशंका जताई जा रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कोई जानवर इस वायरस से ग्रसित होता है तो उसे 10–15 दिनों तक अलग रखकर उपचार दिया जाता है।
यात्रियों को दी गई वैकल्पिक सलाह
पैदल चलने या डांडी-कंठी से करें यात्रा
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने निर्देश दिए हैं कि जब तक स्थिति स्पष्ट न हो जाए, तब तक घोड़े-खच्चरों का संचालन न किया जाए। यात्रियों को पैदल यात्रा करने या डांडी-कंठी जैसे विकल्पों को अपनाने की सलाह दी गई है।
यह निर्णय यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज़ से अहम है, क्योंकि संक्रमित या बीमार जानवरों से संक्रमण फैलने का खतरा भी हो सकता है।
अब कैसे होगा पंजीकरण?
केवल स्वस्थ और निगेटिव रिपोर्ट वाले जानवरों को अनुमति
डॉ. पुरुषोत्तम ने स्पष्ट किया कि आगे से केवल उन्हीं घोड़े-खच्चरों का पंजीकरण होगा जिनकी रिपोर्ट निगेटिव आई हो। यदि किसी जानवर की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो उन्हें 15–16 दिनों तक संचालन से दूर रखा जाएगा और पूरी तरह स्वस्थ होने पर ही यात्रा के लिए अनुमति दी जाएगी।
यह कदम संक्रमण को फैलने से रोकने और अन्य जानवरों को सुरक्षित रखने के लिए बेहद जरूरी है।
घोड़े-खच्चर मालिकों की चिंता
आर्थिक नुकसान का खतरा बढ़ा
इस संकट के चलते घोड़े-खच्चरों के मालिकों के सामने भी आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। कई परिवार पूरी तरह इन जानवरों पर निर्भर हैं और यात्रियों को उनकी सवारी देकर ही रोजी-रोटी कमाते हैं।
स्थानीय संगठनों और व्यापारियों ने सरकार से सहायता की मांग की है, ताकि वे इस कठिन समय में आर्थिक रूप से टिक सकें।
यह कोई पहली घटना नहीं
पूर्व में भी हो चुकी हैं जानवरों की मौतें
पिछले कुछ वर्षों में केदारनाथ यात्रा के दौरान जानवरों की मौत की घटनाएं होती रही हैं। अधिक भीड़, अनियमित चिकित्सा जांच और खानपान की समस्याएं अक्सर इसके पीछे प्रमुख कारण रही हैं।
हालांकि इस बार मौतों की संख्या कम समय में ज़्यादा होने से चिंता बढ़ गई है।
प्रशासन की सतर्कता और भावी तैयारी
जांच रिपोर्ट के बाद बड़े फैसले की संभावना
उत्तराखंड प्रशासन इस समय पूरी सतर्कता के साथ स्थिति की निगरानी कर रहा है। केंद्र सरकार की जांच रिपोर्ट के आने के बाद आगामी रणनीति बनाई जाएगी। इसके तहत घोड़े-खच्चरों के लिए विशेष टीकाकरण अभियान, क्वारंटीन व्यवस्था और पंजीकरण प्रणाली को और सख्त किया जा सकता है।
निष्कर्ष
चारधाम यात्रा जैसे विशाल धार्मिक आयोजन में जानवरों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन इस तरह की घटनाएं यह दिखाती हैं कि समय रहते चिकित्सा और प्रशासनिक तैयारियों को सुदृढ़ करना अनिवार्य है। केदारनाथ यात्रा न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि पशुओं की सुरक्षा के लिहाज से भी एक संवेदनशील मामला है।
यदि सही समय पर जांच और रोकथाम की व्यवस्था हो जाए, तो भविष्य में इस तरह की अप्रिय घटनाओं से बचा जा सकता है।
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