देहरादून जिले में कालसी हरिपुर के पास लगभग 1700 साल पहले राजा शीलवर्मन् ने चार अश्वमेध यज्ञ किए थे। ये स्थल आज भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
जानकारी के अनुसार, 1952 में खुदाई के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को यहां ईंटों से बनी श्येना चिट्टी वेदियां मिलीं, जो श्येना या उड़ते हुए बाज के आकार की हैं। श्येनचित्ति वेदिका शुल्ब सूत्रों के उपयोग से बनाई जाती थीं। शुल्ब सूत्र मनुष्य द्वारा ज्ञात सबसे प्राचीन ज्यामितीय सिद्धांत हैं। इन्हीं को कॉपी कर पाइथागोरस जी ने अपना मशहूर सिद्धांत दिया था।
इस स्थान की विशेषता यह है कि संभवतः सम्पूर्ण भारत में केवल दो अन्य अश्वमेध यज्ञ स्थल हैं: पुरोला (उत्तरकाशी) और कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)। यह स्थान हमारे प्राचीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन हमारे लिए इस यात्रा का असली आनंद इसकी प्राकृतिक सुंदरता में था। यह प्राचीन स्थान एक घाटी में बना है और करीब 500 बीघा में फैले आम के बागान से घिरा है। जैसे ही आप आखिरी गांव से मुड़ते हैं, आमों से लदे पेड़ आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
क्षेत्र के एएसआई ने इस स्थान को अच्छी तरह से संरक्षित किया है और वहां मचान बनाए हैं जहां से इन प्राचीन वेदियों को ऊपर से देखा जा सकता है। साथ ही पक्की सड़क भी बनाई जा रही है, जिससे यहां पहुंचना आसान हो जाएगा।
कहा जाता है कि हरिपुर कभी हरिद्वार की तरह तीर्थ स्थल हुआ करता था जोकि जमुना जी के किनारे बसा हुआ था, संभवतः जमुना जी में आई प्रलयकारी बाढ़ में ये बह गया। यहीं पास में बाढ़वाला कस्बा भी है और कालसी को अशोक शिलालेख की वजह से भी जाना जाता है।